बिहार चम्पारण सत्याग्रह

महत्मा गाँधी के सत्याग्रह का आरंभ चम्पारण से शुरू हुआ था | गाँधी जी ने इस आन्दोलन में सत्य और अहिंसा को आधार बनाया था, इसलिए इसे चम्पारण सत्याग्रह भी कहा जाता है |

    चम्पारण में नील की खेती बहुत दिनों से होती थी | इस क्षेत्र में अंग्रेज बागान मालिकों को जमीन को ठेकेदारी दी गयी थी | इनलोगों ने इस क्षेत्र में  तीनकठिया प्रणाली लागु कर रखी थी | इसके अनुसार पर्त्येक किसान को अपनी खेती - योग्य जमीन के 3/20 हिस्से या 15 % हिस्से में नील की खेती करनी पड़ती थी जबकि किसान नील की खेती नही करना नहीं चाहतेे थे, क्योंकि भूमि की उर्वरता कम हो जाती थी | इतना ही नहीं, किसान अपना नील बहार नहींं बेच सकता था, उन्हें बाजार से कम मूल्य पार् बागन - मालिकों को ही नील बेचना पड़ता था | तीनकठिया व्यवस्था में 1908 में कुछ सुधार भी लाया गया था, परन्तु इससे किसानों मे कोई विशेष लाभ नहीं हुआ | जब जर्मनी के वैज्ञानिकों ने कृत्रिम नीले रंग का उत्पादन शुरू कर दिया तब विश्व बाजार में भारतीय नील की मांग गिर गई | जब नील का मूल्य घटने लगा तब बागान - मालिकों ने इस क्षति की पूर्ति भी किसानों से ही करनी चाही | उनपर अनेक प्रकार के नये कर दिए गये | अगर कोई किसान नील की खेती से मुक्त होना चाहता था तो उसके लिए आवश्यक था कि बगान - मालिकों को एक बड़ी राशि शरबेशी  या तवन (लगान ) के रूप मे दे| बागान -मालिकों के इस अत्याचार से चम्पारण के किसान त्रस्त थे |

        1916   में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में चम्पारण के किसान राजकुमार शुक्ल ने गाँधीजी को चम्पारण आने के लिए कहा और यहाँ के किसानों की दुर्दशा देखने के लिए आमंत्रित किया | गांधीजी ने 1917 में चम्पारण आये | राजेन्द्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी, ब्रजकिशोर प्रसाद, धरनीधर प्रसाद, और गोरख प्रसाद के साथ गांधीजी ने किसानों की दयनीय स्थिति की जाँच की | बड़ी संख्या में गाँधीजी के पास बागान -मालिकों (निलहों ) के अत्याचारों की शिकायत लेकर आये | सरकार गांधीजी की लोकप्रियता से चिंतित हुई, उन्हें गिरफ्तार कर उनपर मुकदमा चलाया गया लेकिन शीघ्र ही उन्हें छोड़ दिता गया | लेकिन गाँधीजी को किसी प्रकार के आन्दोलन करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया, उन्हें केवल किसानों के कष्ट के बारे में जानकारी हासिल करने की स्वीकृति दी गयी |

परन्तु गाँधीजी के दबाव पर सरकार ने 1917 में एक जाँच समिति चम्पारण एग्रेरीयन कमेटी  नियुक्त किया गया | गाँधीजी को भी इसका सदस्य बनाया गया | समिति की सिफारिशों के आधार पर " चम्पारण कृषि अधिनियम " बना |

          इसके अनुसार -
(1)      तिनकठिया - प्रणाली समाप्त दी गयी तथा (1919 में )  अन्य कई प्रकार के कर भी कर दिए गये |

(2)     बढाये गये लगान की दरों में कमी की जाय तथा जो अवैध वशुली किसानों से की गयी थी उसका 25 प्रतिशत किसानों को लौटाया जाय | किसानों को इससे बहुत राहत  मिली | किसानों मे नई चेतना जगी और और वे भी राष्ट्रीय आन्दोलन को अपना देने लगे थे |




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